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Showing posts from 2010

तलाश

ख्यालों में आने वाली  मेरी जिन्दगी में आओ मेरी जिन्दगी संवारो  मेरी संगिनी हो जाओ मेरी कल्पना के साथी मैं  दीया हूँ  तू है बाती है नैराश्यपूर्ण अँधेरा आशा का दीप जलाओ ढूंढा  बहुत जहाँ में मिला ना मीत मन का तलाश कर दो पूरी मनमीत बन के आओ बरसों से हूँ मैं प्यासा एक बूंद प्रेम खातिर जो मिला नहीं है मुझको वो प्यार तुम बरसाओ तनहा हूँ मैं  सफ़र में अपनों का साथ छुटा  ना फिक्र है जहाँ की गर हमसफ़र बनाओ शिकवे गिले अगर हों सुलझाएं प्यार से ही तकरार में भी गोरी तुम प्यार ना भुलाओ ख्यालों में आनेवाली  मेरी जिन्दगी में आओ (पूर्वलिखित : जून 2002)

जीवन की सार्थकता

परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् अर्थात : यह संसार परिवर्तनशील है और इस परिवर्तनशील संसार में जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु होना निश्चित है। जन्म लेना उसका ही सार्थक है जो अपने कुल की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है अर्थात समस्त समाज के लिये ऐसे काम करता है जिससे सभी का हित होता है।

दीपावली की याद

दीपावली की एक तनहा रात रौशन दीयों का जगमग साथ उमड़ते-घुमड़ते कुछ ख़यालात दीपों की आवली की तरह नहीं आसमान में आतिशबाजी की तरह कौंध जाते हैं रह-रह कर याद आते हैं चंद चेहरे बड़ी शिद्दत के साथ और कई चेहरे एक मुद्दत के बाद कैसे होंगे वे जो बिछड़ गए जिन्दगी के किसी मोड़ पर और छोड़ गए खट्टी -मीठी यादें क्या उनकी यादों में मैं भी हूँगा कहीं चंद लम्हों का साथ जो खत्म हो गया इन दीयों की तरह इन्ही यादों में कहीं मेरा गाँव मेरा घर कुछ नए, पुराने होते हुए कुछ पुराने, नए होते हुए इन नए-पुराने के बीच मैं हूँ कहीं नया या पुराना?

विवशता

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इस करतब के बदले मिले दो -चार रुपये क्या  इसकी किस्मत बदल सकते हैं? शायद नहीं.

क्षद्म चेहरे

अजीब है ये दुनिया अजीब हैं इसके रंग लोग  लिपटे हैं क्ष्द्मावरण में और चलते हैं संग संग क्षद्म चेहरे को छुपाने के क्रम  में अनावृत होती सच्चाई एक घिनौनी परछाई अंकित करती है मेरे मन पटल पर एक गहरी उदासी

विवश पल

उनका आना  एक लम्बे समय बाद  कितनी बातें थीं करने को क्या-क्या सोचा था होने को कुछ भी तो नहीं कह पाया सिर्फ देखता रहा गुजरते हुए पलों को मजबूर क्षणों को  वे चले गए  मुझे छोड़कर पछताने को क्या करूँ मैं अपना  विवश ग़म  कैसे सुनाऊं ज़माने को  फिसलते पलों को देखते रह जाने की मजबूरी मेरी कांपते होठों पर अटकी हुई  कहानी मेरी कुछ कह नहीं पाता सारे शब्द पता नहीं कहाँ खो जाते हैं क्या वे सुनते हैं? मेरी ख़ामोशी की आवाज़.

जीवन का प्रवाह

जीवन का कोई अनुभव स्थाई और चिरंतन नहीं. जीवन की स्थिति समय में है और समय प्रवाह है. प्रवाह में साधु-असाधु, प्रिय-अप्रिय सभी कुछ आता है. प्रवाह का यह क्रम ही सृष्टि और प्रकृति की नित्यता है. जीवन के प्रवाह में एक समय असाधु, अप्रिय अनुभव आया इसलिए उस प्रवाह से विरक्त होकर जीवन की तृषा को तृप्त न करना केवल हठ  है.  निरंतर प्रयत्न ही जीवन का लक्षण है. जीवन के एक प्रयत्न या एक अंश की विफलता से पूर्ण जीवन की विफलता नहीं है.                                                                                               ...पुस्तकांश....दिव्या(यशपाल)

आओ मिलकर दिया जलाएं

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आओ मिलकर दिया जलाएं खो लें अपनी मन की गांठें  गले मिलें और रिश्ते जोड़ें हर्ष-प्रकम्पित अधरों से हम आज खुशी के गीत गायें आओ मिलकर दिया जलाएं. बीत रहा जब पल हो बेहतर आनेवाला कल हो बेहतर, बीत गया जो पल था बेहतर यही सीख ले कदम बढ़ाएं आओ मिलकर दिया जलाएं. अच्छी सेहत अच्छा तन हो शिक्षा से सब उज्जवल मन हों कोई पीड़ित न अज्ञानी हो बहकावे में ना नादानी  हो सर्वधर्म सद्भाव बढ़ाएं आओ मिलकर दिया जलाएं.

रेत का महल

कोमल हाथों का स्पर्श मुलायम उँगलियों की थपकी मन की चंद  भावनाओं से निर्मित हुआ एक महल रेत का महल निर्माता प्रफुल्लित प्रकृति गंभीर उसे ज्ञान है सत्य का नश्वरता का कितना क्षणिक नहीं सह सकता एक थपेड़ा, एक झोंका भरभरा जाता है सिद्ध करता हुआ सत्य चिरंतन सत्य.

पैसे की दौड़

अक्सर वह मुझसे कहता है कि 'आप आदर्शवादी हैं जो यह कहते हैं की पैसा ही सब कुछ नहीं है जबकि मेरा मानना है की जिन्दगी में पैसा नहीं तो कुछ नहीं. जैसा आप बनना चाहते हैं वैसा होना अच्छी बात है, पर वैसा बना नहीं जा सकता. यदि बनने की कोशिश की जाये तो बहुत कष्ट उठाना पड़ेगा. इसीलिए 'Be प्रक्टिकल' . मैं जब उसकी बात पर विचार करता हूँ तो लगता है कि उसकी ऐसी सोच इस वर्तमान वयवस्था की देन है. ऐसी सोच रखना उसकी मजबूरी है. इसके लिए मैं उसे गलत नहीं ठहरा सकता हूँ. हमारे समाज में उसके जैसी सोच रखने वाले ही लोगों की संख्या सर्वाधिक है. पैसा.. पैसा और पैसा इसी एक सूत्र के पीछे लोग अपनी सारी प्रतिभा, सारा कौशल, सारा प्रय्तन न्योछावर करने पर उतारू हैं. इसके लिए सारा सिद्धांत सारी नीति, सारी मानवता ग़र्क करने पर उद्धत हैं. आखिर कितना पैसा कमा कर इन्सान सुखी रह सकता है? क्या इसकी कोई सीमा है? शायद नहीं. यह ऐसी दौड़ है जिसकी कोई मंजिल नहीं. पैसे की भूख ऐसी भूख है जो कभी शांत नहीं हो सकती. इसीलिए इससे संतुष्टि अथवा तृप्ति मिलना असंभव है. फिर भी लोग भागे जा रहे हैं एक दुसरे की देखा-देखी. एक अन

चौराहे

चौराहे कितने   चौराहे   हैं राह में संभलना पड़ता है,  लुभावनी हैं हर दिशाएं  संभलना पड़ता है.  भ्रमित हो जाता है राही किधर जाये किधर नहीं, शंकित हो उठता है मन कौन गलत कौन सही, अंतर्मन से पथ को  परखना पड़ता है. मित्र भी मिलते हैं राह में कुछ वैरी भी, अपने भी मिलते हैं साथ में कुछ गैर भी, सबके साथ रिश्ता  निभाना पड़ता है. गिरते मूल्यों के दौर में, इस तेज़ और अंधी दौड़ में, हँसना है मुश्किल पर हँसना पड़ता है. इनकी सुनी कुछ उनकी सुनी कुछ कुटुंब की कुछ समाज की  कुछ था अपना भी अस्तित्व पर मिटाना पड़ता है. स्वाभाविक कभी औपचारिक  आधुनिक कभी पारंपरिक कभी दिखावे के प्रेम से बहलना पड़ता है. छांव भी  मिलते हैं, धुप ही नहीं शूल भी मिलते हैं, फूल ही नहीं आग के दरिया से गुजरना पड़ता है. वो राही क्या जो मुश्किलों से डर जाये बाधाओं के डर से सफ़र छोड़ जाये लक्ष्य कठिन है तो क्या उसे पाना पड़ता है. कितने चौराहे  हैं राह में संभलना पड़ता है.

सिद्धान्तहीन राजनीति

राजतांत्रिक  व्यवस्था में लोकमत की उपेक्षा से अकुलाए लोगों ने प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था को जन्म दिया ताकि लोक-जरूरतों के अनुरूप शासन की नीतियाँ निर्धारित की जाएँ. इस व्वयस्था में लोगों को यह अधिकार मिला की वे स्वयं अपना प्रतिनिधि चुनें जो उनकी आवाज को नीति-निर्धारकों तक पहुँचाए तदनुसार नीतियाँ निर्धारित हों. यही राजनीति का लोककल्याणकारी रूप माना जाता है. पर राजनीति में सारे आदर्श, विचार व नीतियाँ गर सिर्फ सत्ता हासिल करने तक ही सिमट जाएँ तो आदर्श राजनीति की बात बेमानी है. चाहे न चाहे हम राजनीति के इसी दौर से गुजर रहे हैं. आज न तो गाँधी जैसे निःस्वार्थ नेता रहे न वैसे समर्थक. सविनय अवज्ञा आन्दोलन जैसे सफल व निर्णायक आन्दोलन को गाँधी ने सिर्फ इसलिए बंद कर दिया था कि चौरी-चौरा में आन्दोलन का हिंसक रूप उनके अहिंसा के सिद्धांत का उल्लंघन था. आज के दौर में ऐसी मिसाल मिलना मुश्किल है. आज तो सत्ता की  राह को आसान बनाने के लिए कुटिल प्रयास  किये जाते हैं, हिंसक परिस्थितियाँ व दंगे प्रायोजित किये जाते हैं. गठबंधन राजनीति के दौर में कब कौन दल किस पार्टी  के साथ नाता जोड़ ले कयास लगाना मुश्