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Showing posts from December, 2010

तलाश

ख्यालों में आने वाली  मेरी जिन्दगी में आओ मेरी जिन्दगी संवारो  मेरी संगिनी हो जाओ मेरी कल्पना के साथी मैं  दीया हूँ  तू है बाती है नैराश्यपूर्ण अँधेरा आशा का दीप जलाओ ढूंढा  बहुत जहाँ में मिला ना मीत मन का तलाश कर दो पूरी मनमीत बन के आओ बरसों से हूँ मैं प्यासा एक बूंद प्रेम खातिर जो मिला नहीं है मुझको वो प्यार तुम बरसाओ तनहा हूँ मैं  सफ़र में अपनों का साथ छुटा  ना फिक्र है जहाँ की गर हमसफ़र बनाओ शिकवे गिले अगर हों सुलझाएं प्यार से ही तकरार में भी गोरी तुम प्यार ना भुलाओ ख्यालों में आनेवाली  मेरी जिन्दगी में आओ (पूर्वलिखित : जून 2002)

जीवन की सार्थकता

परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् अर्थात : यह संसार परिवर्तनशील है और इस परिवर्तनशील संसार में जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु होना निश्चित है। जन्म लेना उसका ही सार्थक है जो अपने कुल की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है अर्थात समस्त समाज के लिये ऐसे काम करता है जिससे सभी का हित होता है।

दीपावली की याद

दीपावली की एक तनहा रात रौशन दीयों का जगमग साथ उमड़ते-घुमड़ते कुछ ख़यालात दीपों की आवली की तरह नहीं आसमान में आतिशबाजी की तरह कौंध जाते हैं रह-रह कर याद आते हैं चंद चेहरे बड़ी शिद्दत के साथ और कई चेहरे एक मुद्दत के बाद कैसे होंगे वे जो बिछड़ गए जिन्दगी के किसी मोड़ पर और छोड़ गए खट्टी -मीठी यादें क्या उनकी यादों में मैं भी हूँगा कहीं चंद लम्हों का साथ जो खत्म हो गया इन दीयों की तरह इन्ही यादों में कहीं मेरा गाँव मेरा घर कुछ नए, पुराने होते हुए कुछ पुराने, नए होते हुए इन नए-पुराने के बीच मैं हूँ कहीं नया या पुराना?

विवशता

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इस करतब के बदले मिले दो -चार रुपये क्या  इसकी किस्मत बदल सकते हैं? शायद नहीं.

क्षद्म चेहरे

अजीब है ये दुनिया अजीब हैं इसके रंग लोग  लिपटे हैं क्ष्द्मावरण में और चलते हैं संग संग क्षद्म चेहरे को छुपाने के क्रम  में अनावृत होती सच्चाई एक घिनौनी परछाई अंकित करती है मेरे मन पटल पर एक गहरी उदासी

विवश पल

उनका आना  एक लम्बे समय बाद  कितनी बातें थीं करने को क्या-क्या सोचा था होने को कुछ भी तो नहीं कह पाया सिर्फ देखता रहा गुजरते हुए पलों को मजबूर क्षणों को  वे चले गए  मुझे छोड़कर पछताने को क्या करूँ मैं अपना  विवश ग़म  कैसे सुनाऊं ज़माने को  फिसलते पलों को देखते रह जाने की मजबूरी मेरी कांपते होठों पर अटकी हुई  कहानी मेरी कुछ कह नहीं पाता सारे शब्द पता नहीं कहाँ खो जाते हैं क्या वे सुनते हैं? मेरी ख़ामोशी की आवाज़.