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एक ईमानदार की विवशता

आज बहुत दिनों के बाद कवि जी से भेंट हुई. कवि जी कॉलेज में मेरे सीनियर थे. पर्याप्त प्रतिभावान व स्नातकोत्तर की उपाधि होने के बावजूद उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी. सम्प्रति वे नरेगा में पंचायत तकनीकी सहायक की नौकरी निभा रहे हैं. वे नरेगा में भ्रष्टाचार की चर्चा कर रहे थे. वे बता रहे थे कि पंचायत रोजगार सेवक, मुखिया और कुछ स्वार्थी(मजबूर) मजदूर आपसी मिलीभगत से किस तरह जनता का पैसा लूट रहे हैं और इस लूट से उच्चधिकारियों का भी वारा न्यारा कर रहे हैं. उन्होंने शिकायत भी की पर कोई सुनने वाला नहीं है. शिकायत सुनने वाला भी तो इस भ्रष्टाचार का हिस्सा है. वे इस पूरी व्यवस्था से काफी नाराज लग रहे थे. बातों बातों में भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना की मुहिम की चर्चा निकल आई- - उन्होंने छुटते ही कहा- क्या आपको लगता है की इस आंदोलन से भ्रष्टाचार मिट जायेगा? - मैंने कहा- हाँ क्यों नहीं. भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ा कानून होने से लोग इससे जरूर डरेंगे. - आप भ्रम में हैं.. अरे इससे कुछ नहीं होगा – उन्होंने कहा. - मैंने कहा- नहीं कवि जी इससे जरूर फर्क पड़ेगा. - कैसे फर्क पड़ेगा साहब. जिस समाज मे