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टीवी पर चुनावी बहसों को सुन कर बेहद अफ़सोस होता है.  
यादों के एलबम में कुछ तस्वीरें ऐसी होती हैं जिन्हें देखने के लिए हम बार बार इसे खोलते हैं और निहारना चाहते हैं। पता नहीं क्यूँ, जिन्दगी किसी विशेष कालखंड में रुक जाना चाहती है, थम जाना चाहती है पर समय का कैमरा रुकता नहीं वह अनवरत तस्वीरें खींचता जाता है।
राजनीति का स्वरुप जनता की आवश्यकता एवं मांग के अनुरूप होना चाहिए. दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली सफलता से यह साफ संकेत मिला था कि जनता एक साफ-सुथरी एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन चाहती है. यह पार्टी अपने चुनावी वादों को कितना पूरा करती है वह दीगर बात है किन्तु यह समझ लेना चाहिए कि राजनितिक पार्टियों से जनता की क्या उम्मीदें हैं. आज विपक्षी पार्टियाँ यह आरोप लगा रही हैं कि आम आदमी पार्टी भी उनसे अलग नहीं है, उसकी कार्यशैली भी उन्हीं की तरह है. यह बहस का विषय हो सकता है परन्तु इससे यह साबित नहीं होता कि इस पार्टी के जिन मुद्दों को जनसमर्थन मिला वह प्रासंगिक नहीं है. यह चुनाव किसी पार्टी की जीत-हार से ज्यादा लोकतंत्र में जनता की मांग को दर्शाता है. पार्टी चाहे कोई भी हो उसे जनता की जरूरतों के अनुरूप अपनी कार्यशैली रखनी चाहिए.