जीवन का प्रवाह
जीवन का कोई अनुभव स्थाई और चिरंतन नहीं. जीवन की स्थिति समय में है और समय प्रवाह है. प्रवाह में साधु-असाधु, प्रिय-अप्रिय सभी कुछ आता है. प्रवाह का यह क्रम ही सृष्टि और प्रकृति की नित्यता है. जीवन के प्रवाह में एक समय असाधु, अप्रिय अनुभव आया इसलिए उस प्रवाह से विरक्त होकर जीवन की तृषा को तृप्त न करना केवल हठ है. निरंतर प्रयत्न ही जीवन का लक्षण है. जीवन के एक प्रयत्न या एक अंश की विफलता से पूर्ण जीवन की विफलता नहीं है. ...पुस्तकांश....दिव्या(यशपाल)