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जमीनी लोकतंत्र की हकीकत

दृश्य १: समय-शाम का धुंधलका; स्थान-बिहार का एक गाँव हाफ पैंट पहने एक व्यक्ति के पास एक अन्य व्यक्ति आता है और उससे इशारों में कुछ कहता है. पहला व्यक्ति उसे अपने हाफ पैंट की एक जेब में से एक पाउच निकाल कर देता है जिसे लेकर दूसरा व्यक्ति दूसरी तरफ चल देता है. आइये मैं बता दूँ, जिस पाउच का यहाँ जिक्र हो रहा है वह है देशी शराब की पाउच और जो व्यक्ति उसे दे रहा है वह पैक्स ( PACS ) चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हुए उम्मीदवार का समर्थक है. यह शराब मुफ्त प्रदान की जा रही है जिसके एवज में प्रत्याशी के पक्ष में समर्थन पाने की उम्मीद है. यह बानगी भर है आज के जमीनी स्तर के लोकतंत्र का. सत्ता एवं शक्ति का विकेंद्रीकरण को लक्ष्य में रखकर जिन व्यवस्थावों को जन्म दिया गया वह इस रूप में सामने आएगा, इसे इसके जन्मदाताओं ने शायद सोचा भी न होगा. यह सोच कर हैरानी होती है कि जिन पैक्सों का गठन किसानों को बिचौलियों से बचाने एवं उनकी सहायता के लिए किया गया था, वह आसान धन कमाने का एक जरिया बन चूका है. पिछले कार्यकाल में जो पैक्स अध्यक्ष इस दुधारू गाय को दुह कर अपनी अट्टालिकाएं खड़ी कर चुके
जिंदगी को अपने शर्तों पर जीना आसान नहीं होता. इस कठोर दुनिया में आपके संवेदनाओं को समझने वाले बहुत कम मिलते हैं. वे बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसे साथी मिले हैं जो उनको अपने सपनों के साथ जीने के लिए संबल प्रदान करते हैं और ठोकर लगने पर उन्हें सहारा प्रदान करते हैं.
हमारा परिवार हमारे समाज की एक इकाई है तथा परिवार को समझ लेने से समाज को समझने में आसानी होती है.