वयस्कों को सीखाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. हमें उनके प्रशिक्षण कौशल के मूल्यांकन के लिए उनका अभ्यास सत्र कराना पड़ता है तथा सत्र की समाप्ति के बाद उनके प्रदर्शन के आधार पर फीडबैक दिया जाता है. बहुत से प्रतिभागी विशेषकर महिला प्रतिभागी जिनको अच्छा फीडबैक नहीं मिलता वे रोने लग जाती हैं. ऐसी स्थितियों में बड़ी सावधानी से उन्हें भावनात्मक समर्थन देना पड़ता है.
सूचना के अधिकार से सशक्त होती महिलाएं
सोनडिमरा की अलका हो, डिमरा की सुचित्रा या फिर मगनपुरा की सुबोध, ये महिलाएँ देखने में किसी आम ग्रामीण महिलाओं जैसी ही हैं. मुश्किल से 8वीं या 9वीं कक्षा पास ये महिलाएं जब तक आप से बात न करें तो आप उनसे साधारण ग्रामीण महिलाओं जैसा ही व्यवहार करते हैं लेकिन जब आप उनकी गतिविधियों पर नज़र डालेंगे तो आप को हैरत होगी कि वे अपने सामाजिक अधिकारों के प्रति किसी भी सुशिक्षित आधुनिक महिला से ज्यादा सचेष्ट व जागरूक हैं. ये महिलाएँ वह सब कुछ कर दिखा रही हैं जो तथाकथित शिक्षित समाज में सिर्फ बहस-मुबाहसों तक सिमट कर रह जाता है. हजारीबाग(झारखण्ड) जिले के गोला प्रखंड की रहनेवाली ये महिलाएँ न सिर्फ स्वयं व अपने गाँव के विकास के प्रति क्रियाशील हैं बल्कि अपने क्षेत्र की सामाजिक समस्याओं से भी बाखबर हैं. विकास भैरवी महिला फेडरेशन के बैनर तले इन जैसी हजारों महिलाओं ने स्वयंसहायता समूहों का गठन किया है और उसका सफल संचालन कर रही हैं. इससे वे न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं बल्कि गाँव की समृद्धि में भी अपना योगदान दे रही हैं. अपने प्रखंड में उपलब्ध सरकारी स...
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