विवश पल

उनका आना 
एक लम्बे समय बाद 
कितनी बातें थीं करने को
क्या-क्या सोचा था होने को
कुछ भी तो नहीं कह पाया
सिर्फ देखता रहा
गुजरते हुए पलों को
मजबूर क्षणों को 


वे चले गए 
मुझे छोड़कर
पछताने को
क्या करूँ मैं
अपना  विवश ग़म 
कैसे सुनाऊं ज़माने को 


फिसलते पलों को
देखते रह जाने की
मजबूरी मेरी
कांपते होठों पर
अटकी हुई 
कहानी मेरी


कुछ कह नहीं पाता
सारे शब्द पता नहीं
कहाँ खो जाते हैं
क्या वे सुनते हैं?
मेरी ख़ामोशी की आवाज़.

Comments

  1. bahut hi sundar........

    kya aawaz hai aapki khamoshi men..

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  2. khamosh lafz
    aksar shor karte hain..
    teri yaado ke nastar
    mujhe behisab kamjor karte hain...!!

    kya khoob liha hain bhaiya...!!

    ReplyDelete
  3. Shukriya Deepak and Pratik

    ReplyDelete

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