चौराहे

चौराहे

कितने चौराहे हैं राह में
संभलना पड़ता है, 
लुभावनी हैं हर दिशाएं 
संभलना पड़ता है. 

भ्रमित हो जाता है राही
किधर जाये किधर नहीं,
शंकित हो उठता है मन
कौन गलत कौन सही,
अंतर्मन से पथ को 
परखना पड़ता है.

मित्र भी मिलते हैं राह में
कुछ वैरी भी,
अपने भी मिलते हैं साथ में
कुछ गैर भी,
सबके साथ रिश्ता 
निभाना पड़ता है.

गिरते मूल्यों के दौर में,
इस तेज़ और अंधी दौड़ में,
हँसना है मुश्किल पर
हँसना पड़ता है.

इनकी सुनी कुछ उनकी सुनी
कुछ कुटुंब की कुछ समाज की 
कुछ था अपना भी अस्तित्व
पर मिटाना पड़ता है.

स्वाभाविक कभी औपचारिक 
आधुनिक कभी पारंपरिक
कभी दिखावे के प्रेम से
बहलना पड़ता है.

छांव भी  मिलते हैं, धुप ही नहीं
शूल भी मिलते हैं, फूल ही नहीं
आग के दरिया से
गुजरना पड़ता है.

वो राही क्या जो
मुश्किलों से डर जाये
बाधाओं के डर से सफ़र छोड़ जाये
लक्ष्य कठिन है तो क्या
उसे पाना पड़ता है.
कितने चौराहे  हैं राह में
संभलना पड़ता है.

Comments

  1. "इनकी सुनी कुछ उनकी सुनी
    कुछ कुटुंब की कुछ समाज की
    कुछ था अपना भी अस्तित्व
    पर मिटाना पड़ता है."

    बहुत खूब.वाह.
    सुंदर अभिव्यक्ति है गुरुजी. इसी तरह अपनी लेखनी से हमें रसास्वादन कराते रहिए.

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  2. housla afjaee ke liye bahut-bahut shukriya.

    ReplyDelete

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